24 March 2015

Whites of Childhood

सुफ़ैद सी रोज़ को निकला तिम्कु, 
अपनी सुफ़ैद कहानियाँ बुनने ॥
लिए गुब्बारा और पतंग को, 
सुफ़ैद आसमान में उड़ने ॥ 

हस्ता खिलता है ये तिम्कु,
रोता रूठता है ये तिम्कु,
नहता धोता नहीं है तिम्कु। 
नन्हा तिम्कु शैतान तिम्कु ॥ 

गुब्बारे भी उड़ गए, पतंग भी,
तिम्कु भी चाहे उड़ना, इधर भी, उधर भी ॥ 
गुब्बारे है नाज़ुक और मासूम । 
पतंग है निर्मल और अंकुश । 

उसी तरह है हमारा तिम्कु, प्यारा तिम्कु ।
सुफ़ैद है ये दास्तां, सुफ़ैद है ये रास्तां,
तिम्कु है मासूम, तिम्कु है नादान ,
सुफ़ैद रहे उसके अरमान ॥
रौनक कोगटा

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