11 March 2013

अभिव्यक्ति

अभिव्यक्ति इस मानस की । 
है कुछ संगीन ॥ 
रंगो से है, भरी हुई । 
पर रंगो पर ही, एक छवि हुई

इसका आकर है निराकार । 
और भोग है तप
जीवन के इस प्रष्ठ पर । 
ये रहती सदैव, तृप्त

कौन है हम, कौन हो तुम  । 
के सिलसिले में, झूझती हुई । 
इठलाती हुई, और मटकाती हुई
ऐसी कुछ अदा है, प्रति प्रति व्यक्ति  की

कुछ ख्याल, कुछ उन्माद । 
उमड़े मेरे लघु मन में
कुछ सपने, कुछ अरमान । 
जागे इस जीवन में

चाहा कि, बनू एक आवाज़ । 
या कोई चलती किताब ॥ 
पर होता है मुश्किल । 
     कुछ इसका हिसाब  ॥    

य़ो तो मैं , कवि सही ।
पर शब्दो में, मैं रवि नहीं ।।

चाहता हूँ, सुनाना मेरे दिल का हाल । 
मेरी अभिव्यक्ति, मेरा इंसान
रौनक, रिक्सोर वाला




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