सुफ़ैद सी रोज़ को निकला तिम्कु,
अपनी सुफ़ैद कहानियाँ बुनने ॥
लिए गुब्बारा और पतंग को,
सुफ़ैद आसमान में उड़ने ॥
हस्ता खिलता है ये तिम्कु,
रोता रूठता है ये तिम्कु,
नहता धोता नहीं है तिम्कु।
नन्हा तिम्कु शैतान तिम्कु ॥
गुब्बारे भी उड़ गए, पतंग भी,
तिम्कु भी चाहे उड़ना, इधर भी, उधर भी ॥
गुब्बारे है नाज़ुक और मासूम ।
पतंग है निर्मल और अंकुश ।
उसी तरह है हमारा तिम्कु, प्यारा तिम्कु ।
सुफ़ैद है ये दास्तां, सुफ़ैद है ये रास्तां,
तिम्कु है मासूम, तिम्कु है नादान ,
सुफ़ैद रहे उसके अरमान ॥
रौनक कोगटा