इस रात की सन्नाहट,
मुझे मेरी साँसों से रफ्ता कराती है |
समय की चकरी, और धीरे, और धीरे;
मेरे मन को घेरे जाती है ||
मेरे सपने, मेरे विचार;
सबका चिंतन लेता है एक आकार |
पर ठहर जाता हूँ;
उन बातों पर, जो मैंने ना कही;
और किसी ने ना सुनी ||
कुछ संगीन, कुछ रंगीन
कुछ बद्तमीज़ और कुछ कवि |
अनकही ना है ये शब्दो की,
पर इरादो की ||
जाना है, जीवन है शुन्य
और धीरे धीरे, समय की चकरी |
बनाती इसे शून्य ||
अपने मन की अनकही,
को चीखो, चिल्लाओ |
क्योंकि रात की सन्नाहट में ,
कहा अवश्य गूँजेगा ||
मुझे मेरी साँसों से रफ्ता कराती है |
समय की चकरी, और धीरे, और धीरे;
मेरे मन को घेरे जाती है ||
मेरे सपने, मेरे विचार;
सबका चिंतन लेता है एक आकार |
पर ठहर जाता हूँ;
उन बातों पर, जो मैंने ना कही;
और किसी ने ना सुनी ||
कुछ संगीन, कुछ रंगीन
कुछ बद्तमीज़ और कुछ कवि |
अनकही ना है ये शब्दो की,
पर इरादो की ||
जाना है, जीवन है शुन्य
और धीरे धीरे, समय की चकरी |
बनाती इसे शून्य ||
अपने मन की अनकही,
को चीखो, चिल्लाओ |
क्योंकि रात की सन्नाहट में ,
कहा अवश्य गूँजेगा ||
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